
भारतीय चित्रपट संगीत हमेशा से रचनाधर्मी रहा है। थोड़ा पीछे जाएँ तो याद आता है कि उस्ताद अमीर ख़ॉं , उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ॉं, पं. डी.वी. पलुस्कर, बेग़म अख़्तर, पं. भीमसेन जोशी, विदूषी निर्मला अरुण, विदूषी किशोरी अमोणकर, लक्ष्मी शंकर, आरती अंकलीकर, पं. अजय चक्रवर्ती, संजीव अभ्यंकर जैसे कई स्वनामधन्य कलाकारों की आवाज़ का ख़ूबसूरत इस्तेमाल फ़िल्म इण्डस्ट्री ने किया है। अभी हाल ही में प्रकाशित करीना कपूर और शाहिद कपूर की फ़िल्म "जब वी मेट' में उस्ताद राशिद ख़ॉं साहब की आवाज़ का जलवा बिखरा है। कम्पोजिशन बड़ी प्यारी बन पड़ी है और शानदार साउण्ड इ़फ़ैक्ट्स और वाद्यवृंद के साथ रामपुर- सहसवान के इस जश्मे-चिराग़ का जादू महसूस करने की चीज़ है। खरज में डूबी उस्ताद राशिद ख़ॉं की आवाज़ का प्रभाव कुछ ऐसा है पाश्चात्य वाद्यो के बीच में भी वह ख़ालिस और निर्दोष नज़र आता है। जिन आवाज़ों ने पिछले दस बरस में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का परचम लहराया है उसमें उस्ताद राशिद ख़ॉं का नाम सबसे आगे है। शास्त्रीय संगीत की रहनुमाई करने वाले इस स्वर साधक ने शब्दों के प्रभाव पर क़ायम रहते हुए इस बन्दिश को जिस तरह से निभाया है यह सुनकर ही महसूस किया जा सकता है। हॉं ग़ौर करने की बात यह भी है कि चित्रपट संगीत सीमित समय के अनुशासन का संगीत होता है लेकिन यहाँ भी राशिद ख़ॉं जैसे गुणी कलाकार अपना खेल दिखा ही जाते हैं।
मुलाहिज़ा फ़रमाईये....