Saturday, August 30, 2008

आशा भोंसले की आवाज़ में ये क्लासिकल रंग की बंदिश

भारतीय संगीत की पटरानी आशा भोंसले की आवाज़ की वर्सेटलिटि का जवाब नहीं.
उन्हें सिर्फ़ हिन्दी चित्रपट गीतों की सीमा में बांधना मूखर्ता ही होगी. गुजराती,मराठी,पंजाबी,राजस्थानी और अंग्रेज़ी तक में अपनी आवाज़ का जलवा बिखेर चुकीं आशाजी ने गायकी के क्षेत्र में एक लम्बी यात्रा तय की है. परिवार में ही संगीत का विराट स्वर मौजूद हो तब अपनी पहचान विकसित करना एक चुनौती होता है. कहना बेहतर होगा कि लताजी यदि संगीत की आत्मा हैं तो आशाजी उसकी देह हैं.
वेदना,मस्ती,उल्लास और अधात्म में पगे गीत जिस तरह से आशाजी के कंठ से निकले हैं वह विस्मयकारी है.
आज सुरपेटी पर प्रकाशित रचना मराठी नाटक मानपमान की ख्यात बंदिश है.इसे कम्पोज़ किया है वरिष्ठ संगीत-महर्षि पं.गोविंदराम टेम्बे ने.जब आप ये रचना सुन रहे होंगे तो महसूस करेंगे कि आशा भोंसले के रूप में हमारे चित्रपट संगीत ने एक महान स्वर पाया किंतु शास्त्रीय संगीत ने इसी कारण न जाने क्या अनमोल खोया.चलिये हिसाब-किताब बाद में करते रहेंगे अभी तो सुनिये आशाजी की तानें,मुरकिया और हरकतें कैसी बेजोड़ बन पड़ीं हैं.

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6 comments:

makrand said...

their may be lot of songs but asha no words to compare

Radhika Budhkar said...

sunadr marathi geet

दिलीप कवठेकर said...

बडे दिनों बाद यह मधुर गीत सुना. तानें , मुरकियां और हरकतें तो आशा भोंसले का Bastion है, कहीं कहीं वे लताजी से भी आगे निकल जाती है.उस्ताद गुलाम अली भी लोहा मानते हैं.

इनका रवि मी भी अगर सुना सकें तो....

mamta said...

वैसे हमने ये गीत पहले नही सुना था । मराठी भाषा मे होने पर भी गीत की अपनी मिठास और आशा जी की आवाज का जादू। शुक्रिया।

सागर नाहर said...

संगीत किसी भाषा का मोहताज नहीं. और रचना को बारे बस सुनकर जो आनन्द मिला है, उसका वर्णम कर पाना नामुमकिन है, शायद गूंगे के गुड़ के स्वाद की तरह। आशाजी ने कमाल कर दिया।

गज़ब की चीज खोज लाये आप

Unknown said...

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