Sunday, August 17, 2008

बाँसुरी के जादूगर से सुनिये - जादूगर सैया छोड़ो मोरी बैंया

बलजिंदर सिंह मेरे शहर के जाने माने बाँसुरी वादक हैं.हम प्यार से उन्हें बल्लू भाई कहते हैं.कंस्ट्रक्शन का लम्बा चौड़ा कारोबार है बल्लू भाई का लेकिन दिल रमता है संगीत में.बाँसुरी बजाते हैं और क्या ख़ूब बजाते हैं.किसी भी आयोजनों में कितनी चमक दमक हो लेकिन यदि वहाँ बल्लू भाई की बाँसुरी की आवाज़ सुनाई दे रही हो तो समझ लीजिये समाँ कुछ और ही हो जाता है. अब तो बल्लू भाई सिर्फ़ देश ही नहीं विदेशों में जाकर अपनी प्रस्तुतियाँ दे रहे हैं. बल्लू भाई को भी आपकी-मेरी तरह गुज़रे ज़माने का संगीत ही भला लगता है. अब चूँकि वे एक हुनरमंद बाँसुरी वादक हो गए हैं तो किसी गीत को बजाते हुए अपनी कल्पनाशीलता का रंग भी भर देते हैं जो कानों को बड़ा मीठा लगता है. बहुत दिनों से इच्छा थी कि बल्लू भाई से आपको मिलवाऊं .फ़िल्म नागिन(1954) का गीत सुनवा रहा हूँ.गुज़रे ज़माने के संगीत की ताक़त ये है कि एक समय के बाद ये फ़िल्मी गीत से लोकगीत बन जाते हैं.
गीत शैलेंद्र जी ने सिरजा था और संगीत का जादू रचा था हेमंतकुमार ने.
जानता हूँ कि बल्लू भाई की बाँसुरी सुनते सुनते आपका जी चाहेगा कि इस
गीत गुनगुनाया जाए...तो हुज़ूर ये रहे गीत के बोल.....

जादूगर सैंया छोड़ो मोरी बैंया
हो गई आधी रात,अब घर जाने दो

जाने दे ओ रसिया,मोरे मन बसिया,गाँव मेरा बड़ी दूर है
तेरी नगरिया रूक न सकूँ मैं,प्यार मेरा मजबूर है
ज़ंजीर पड़ी मेरे हाथ , अब घर जाने दो

झुकी झुकी अँखियाँ,देखेंगी सारी सखियाँ,ताना देंगी तेरे नाम का
ऐसे में मत रोक बेदर्दी,ले वचन कल शाम का
कल होंगे फ़िर हम साथ , अब घर जाने दो

रविवार को ये सुरीला उपहार आपको ज़रूर सुहाएगा,ऐसा विश्वास है मुझे.

14 comments:

अनुराग अन्वेषी said...

दफ्तर जाने की मजबूरी न होती तो इसे पता नहीं कितनी बार और सुनता। अखबार की नौकरी आज खल रही है। बहुत ही प्यारा। अब आज की रात आपके ब्लॉग को खंगालूंगा। फिलहाल मेरी ओर से आपका शुक्रिया, कसैले मन को राहत देने के लिए।

Yunus Khan said...

वाह जी वाह । बधाई दीजिये बल्‍लू भाई को ।
शिकायतें---उनकी तस्‍वीर कहां है ।
दूसरी बात बल्‍लू भाई के रिकॉर्ड निकले हैं क्‍या ।
नहीं निकले तो अब निकलने चाहिए । उन्‍हें कंपनियों से संपर्क करना चाहिए ।
उनका हक़ बनता है ।
बेहतरीन बांसुरी । मजा़ आ गया ।

अमिताभ मीत said...

संजय भाई, ये तो गज़ब है ..... एक तो बांसुरी (बांसुरी और सारंगी ... इन का कुछ अजीब सा असर होता है, कमसकम मुझ पर) और बल्लू भाई ने तो क़हर ही ढा दिया है .... आप का बहुत आभार ....

रवि रतलामी said...

स्वर्गिक अनुभूति युक्त बांसुरी वादन. इनका या आपके पास उपलब्ध संपूर्ण संग्रह किस विधि मिल सकता है? इंटरनेट पर डाल सकें तो और उत्तम.

Arun Arora said...

वाह वाह जी वाह

Anonymous said...

कच्चे को पक्के वाले ने बजाया , पक्के श्रृंगार-अलंकार के साथ । हमारे पंडित छन्नूलाल मिश्र जैसे ख़याल के साथ - साथ चैती , कजरी , कहरवा पर भी जोर दे देते हैं , जनता की माँग पर।
बलजिंदर सिंहजी को और आपको हार्दिक शुक्रिया ।
- अफ़लातून .

eSwami said...

इन्दौर में तकरीबन १०-१५ साल पहले की बात है.
मेरे छोटे भाई जो बांसुरी पर कुछ एक गीत बजा लेते हैं ने, मुझे एक हम-उम्र सिख लडके के बारे में बताया था जो बहुत अच्छी बांसुरी बजाता था. वो एक नेत्रहीन गुरु से सीख रहा था. आपकी पोस्ट पढ कर वो जिक्र याद आ गया. शायद १०-१५ साल पहले का वो सिख लडका ये बल्लू भाई ही तो नहीं? :)

नितिन | Nitin Vyas said...

बल्लू भाई को बधाईयां। आप को बहुत बहुत धन्यवाद!

Harshad Jangla said...

Sanjaybhai

Pardon me to make a correction. The song Jadugar Sainya from Nagin was written by Rajinder Krishna and not by Shailendra.
Thanx for the flute vadan.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

मैथिली गुप्त said...

वाह वाह वाह
पिछली बार आपने दाते जी की बांसुरी की मधुरता दी थी इस बार बल्लू भाई की.
लगता है इन्दौर बहुत ही सुरीला नगर है.
लेकिन सिर्फ इतने से बात नहीं बनेगी, आगे भी बल्लू भाई का वादन सुनवाईयेगा

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेहद सुरीला बाँसुरी वादन किया है और गीत और भी निखर गया -
उन्हेँ बहुत बधाइयाँ दीजियेगा हमारी ओर से सँजय भाई और धुन सुनने की इच्छा है वो भी पूरी करवाइयेगा ~
- लावण्या

दिलीप कवठेकर said...

बल्लु भाई की बंसुरी सुना कर मोह लिया. कभी इनका गायन भी सुनवायें, अगर रेकॊर्ड पर हो तो.

माशा अल्लाह क्या बजते है और क्या गाते है. अमूमन सांस से बजने वाले वाद्य बजाने वालों की सांस की रियाज़ की वज़ह से गाने में वह ठहराव नही आ पाता, कम से कम मेरे देखने में नही आया थ. बल्लु इसका अपवाद है.

इनके नेत्रहीन गुरु का नाम है गौरी शंकर जी, जो अभी भी गुमनामी की ज़िन्दगी जी रहे हैं.वे वायलीन भी कमाल की बजाते है, और उनका कहना है की बल्लु अगर शास्त्रीय संगीत के रियाज़ में थोडा ज्यादा ध्यान देते तो आज उस क्षेत्र में अग्रणी रहते.

सुर पेटी की आदत डालनी होगी, वर्ना यह ब्लोग छूटता नही इतवार को. हम श्रोता बिरादरी के तेरे नैना तलाश करें में ही खो गये थे.एक साथ इतनी खुशी,इतना स्वानंद ..धन्यवाद..

सतीश पंचम said...

वाह, आनंदम् आनंदम्। चार साल पुरानी इस पोस्ट को गूगल के जरिये ढूंढा।
बल्लू भाई की बांसुरी सुनने का तो आनंद आ गया। बहुत बहुत शुक्रिया।

Unknown said...

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