Sunday, August 8, 2010

मोरा अंग अंग रंगा क्यों रसिया-पीनाज़ मसानी

दूरदर्शन के सुनहरी दिनों की यादें दिल में हमेशा ठाठें मारतीं रहतीं हैं.इस दौरान पीनाज़ मसानी जो मूलत: ग़ज़ल के लिये अपनी ख़ास पहचान रखतीं हैं; कि ये प्यारी रचना यू ट्यूब पर हाथ लग गई.

फ़िरोज़ दस्तूर और मधुरानी जैसे गुरुजनों से तालीम पा चुकीं पीनाज़ मसानी इन दिनों ज़्यादा सुनाई नहीं दे रही हैं. ग़ौर करें कि यह गीत गाते हुए युवा पीनाज़ कितनी भीगी हुईं हैं. सारंगी,बाँसुरी,हारमोनियम और तबले का आसरा लेकर ये रचना कितनी सुरीली सुनाई पड़ रही है. दूरदर्शन और आकाशवाणी ने इन बरसों में जो गँवाया है वह अपनी जगह है लेकिन हम संगीतप्रेमियों का एक बड़ा नुकसान यह हुआ है कि सुगम संगीत विधा जिसे आगे बढ़ाने में आकाशवाणी का बहुत बड़ा योगदान रहा है,से हम वंचित रह हो गए हैं. जगजीतसिंह,मेहंदी हसन,हरिओम शरण,पंकज उधास से लेकर पीनाज़ मसानी तक न जाने कितने गूलूकार हमारे घरों और कानों तक रेडियो के ज़रिये ही पहुँचे हैं. नरेन्द्र शर्मा,उध्दवकुमार,मधुकर राजस्थानी और सुदर्शन फ़ाक़िर जैसे कितने ही नामों से हमारी पहचान रेडियो की सुगम संगीत महफ़िलों ने करवाई है. बहरहाल जो हुआ सो हुआ...आइये सुरपेटी पर पीनाज़ के कंठ से झर रही बौछार में भीग लिया जाए.


3 comments:

दिलीप कवठेकर said...

इन्दौर आते ही भीगी फ़ुआरों के साथ पीनाज़ की भीगी हुए आवाज़ दिली सुकून दे गयी.धन्यवाद.

पीनाज़ का स्वर एक सेंस्युअस एम्बियेंस का आभास देता है, मगर उसने शालीनता से उसे और भी श्रवणीय बना दिया है.

सागर नाहर said...

बहुत खूब...
मन को अजीब सा सुकून मिला सुनकर।

Raghu said...

Fantastic, adbhut...shukriya, janaab...