Friday, April 13, 2012

नुसरत बाबा की एक बेजोड़ बंदिश


नुसरत बाबा जो करते हैं सो अनूठा ही होता है.
ये कंपोज़िशन सुनिये तो लगता है जैसे सुरों का
एक दहकता अंगार हमारे बीच मौजूद है.
उस्तादजी ने क़व्वाली विधा में काम करते हुए मौसीक़ी
के हर उस नयेपन को क़ुबूल किया जो सुरीला हो.
पूरिया या मारवा जैसे राग से प्रकाशित यह बंदिश
रोंगटे खड़े करती है. मुलाहिज़ा फ़रमाएँ.