Sunday, December 27, 2009

कभी बिंदिया हँसे ,कभी नैन हँसे; नाहिद अख़्तर


इंटरनेट की रविवारीय सैर में ये गीत मुझे हाथ लगा. नाहिद अख़्तर की आवाज़ है और बहुत प्यारे बोल हैं. सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि नाहिद आपा की आवाज़ में सुर की जो ख़ालिस सचाई है वह आजकल बहुत कम सुनाई देती है. दूसरी चीज़ इस गीत का कम्पोज़िशन है. पाकिस्तान से अमूमन हम सब ग़ज़लें,क़व्वालियाँ और लोक संगीत तो सुनते आए हैं लेकिन गीतों को भी बहुत लाजवाब धुन में ढ़ालने का एक सुरीला सिलसिला पाकिस्तान के कम्पोज़र्स के यहाँ सुनाई देता है. नाहिद अख़्तर की गाई हुई यह रचना उसी सुरीलेपन का पता देती है. समूह वॉयलिन,बाँसुरी,सारंगी और सरोद के साथ से सजी ये धुन कितनी मोहक और बेजोड़ बन पड़ी है, ज़रा सुन कर तो देखिये......

Naheed Akhtar Kabi Bindia .mp3
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Monday, November 23, 2009

आरती अंकलीकर के स्वर में एक सुन्दर रचना


जयपुर अतरौली घराने की नुमाइंदगी करने वाली युवा गायिका आरती अंकलीकर भारतीय शास्त्रीय संगीत परिदृष्य की लोकप्रिय कलाकार हैं.शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत दोनो ही विधाओं में उन्हें सुनना हमेशा विस्मय और सुक़ून देता है. अभी हाल ही में वे इन्दौर तशरीफ़ लाईं जिसके बारे में अपने ब्लॉग एक मुलाक़ात में जल्द ही लिखूंगा..फ़िलहाल इस रचना का आनंद लीजिये.शब्द के अनुरूप भाव को ढालने से ही कविता निहाल हो जाती है. दिव्य स्वर का स्पर्श कितना कुछ बदल देता है किसी बंदिश को ये आप यहाँ महसूस करेंगे.मालूम होवे के आरती गान-सरस्वती किशोरी अमोणकर की शिष्य हैं और फ़िल्म सरदारी बेग़म में सफल गायन कर चुकीं हैं.



Aarti Ankalikar - More Baanke Chhaliya .mp3
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Friday, July 3, 2009

ये उस्ताद अमीर ख़ाँ नहीं;गोस्वामी गोकुलोत्सवजी हैं


उनका स्वर,तान और बोल-बनाव सुनकर यही लगता है कि यह इन्दौर घराने के स्वर सम्राट उस्ताद अमीर ख़ाँ साह्ब की आवाज़ है.लेकिन हुज़ूर ये हैं पद्मश्री गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज. इन्दौर में ही बिराजते हैं और पुष्टिमार्गी श्री वल्लभाचार्य सम्प्रदाय के वरिष्ठ आचार्य हैं. संगीत जगत में तो महाराज श्री हमारे लिये इसलिये पूजनीय हैं कि हमें उनकी गायकी में अति-विलम्बित और धीर गंभीर कलेवर का रस मिलता है.वे फ़ारसी,संस्कृत,आयुर्वेद,यूनानी औषधी और सामवेद के अनन्य ज्ञाता हैं.जिस पीठ पर आचार्यश्री विराजित हैं उसी मंदिर में अपनी युवावस्था के दौरान उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब का बहुत आना जाना रहा . आचार्य श्री ने न तो कभी उस्ताद को देखा और न कभी सुना. बस मंदिर में मौजूद अमीर ख़ाँ साहब की एकाधिक ध्वनि मुद्रिकाओं को सुनकर उन्हें लगा कि यही है वह गायकी जो मुझे आत्मसात करना है. वे लाजवाब पखावज वादक रहे हैं और ध्रुपद गायकी के भी जानकार हैं.उन्होंने मधुरपिया उपनाम से कई बंदिशे रचीं हैं.

आज सुरपेटी पर अपने ही शहर के इस विलक्षण साधक को प्रस्तुत कर अनन्य प्रसन्नता हो रही है. मौक़ा भी है और दस्तूर भी.... आसमान में बादल छाए हैं.आइये गोस्वामी गोकुलोत्सवजी के स्वर में सुनें राग मियाँ मल्हार. बंदिश उनकी स्वरचित है.

यह गायकी उस रस का आस्वादन करवाती है जो किसी और लोक से आई लगती है और जब कानों में पड़ती है तो उसके बाद कुछ और सुनने को जी नहीं करता.

Miyamalhar - Gokul...

Wednesday, July 1, 2009

अब कहाँ सुनने को मिलता है ऐसा भरा-पूरा मालकौंस ?


अभी 24 जून को संगीतमार्तण्ड ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म दिन था. ग्वालियर घराने की गायकी के इस शीर्षस्थ गायक ने कुछ ऐसे अदभुत करिश्मे रचे जिसकी दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है. गुजरात में जन्में और वाराणसी में महामना पं.मदनमोहन मालवीय के आग्रह पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत के आचार्य पद की गरिमा में इज़ाफ़ा किया. वे तत्कालीन संगीत परिदृष्य के सबसे आकर्षक व्यक्तित्व थे. महान रंगकर्मी पृथ्वीराज कपूर एक बार बी.एच.यू. पधारे तो उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि पं.ओंकारनाथ ठाकुर से जैसा व्यक्तित्व तो रंगकर्म की विधा में होना चाहिये था. पचास और साठ के दशक में पण्डितजी की महफ़िलों का जलवा पूरे देश के मंचों पर छाया रहा. मेरे शहर इन्दौर में भी पण्डितजी की कई यादगार महफ़िलें हुईं.पं.ओंकारनाथ ठाकुर की गायकी में रंजकता का समावेश तो था ही;वे शास्त्र के अलावा भी अपनी गायकी में ऐसे रंग उड़ेलते थे कि एक सामान्य श्रोता भी उनकी कलाकारी का मुरीद हो जाता. उनका गाया वंदेमातरम या मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो सुनने पर एक रूहानी अनुभूति होती है.प्रचार और पी.आर. के इस दौर में नई पीढ़ी के श्रोता पं.ओंकारनाथजी जैसे महार वाग्गेयकार का विस्मरण करती जा रही है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझे यह कहते कोई झिझक नहीं कि पं.ठाकुर की गायकी का अनुसरण ही नहीं उनकी नक़ल भी बाद के कई नामचीन गायकों ने की और यश पाया.

आज सुरपेटी पर पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का गाया रात्रिकालीन राग मालकौंस सुनिये.विलम्बित और द्रुत लय में निबध्द ये बंदिश (पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे) श्रोता को एक अलौकिक स्वर यात्रा करवाती है.
वैसे पण्डितजी की गायकी इतनी सुमधुर है कि इस उनका गायन कभी भी सुनें , आनंद ही देती है लेकिन हो सके तो इस प्रस्तुति को रात्रि के समय की सुनें,आनंद द्विगुणित होगा.

Raag Malkauns - Pa...

Sunday, June 28, 2009

मैं तो साँवरे के संग राची-कौशिकी चक्रवर्ती.


पटियाला घराने की गायकी के अनुगामी पं.अजय चक्रवर्ती की यशस्वी सुर-पुत्री कौशिकी
के गले में अपने पिता-गुरू की सारी ख़ूबियाँ मौजूद हैं.वे जब जो गा रहीं है तो अपनी एक विशिष्ट छाप छोड़ देतीं हैं.अल्पायु में ही उन्हें नाम,शोहरत और प्रतिष्ठित मंच मिलने लग गए थे. आज सुर-पेटी पर राग मिश्र तिलंग में निबध्द भजन कौशिकी के स्वर में सुरभित हो रहा है. यह मीरा-भजन न जाने कितनी बार कितनी ही गायिकाओं से आपने सुना होगा लेकिन यहाँ कौशिकी के स्वरों का अंदाज़ ही कुछ निराला है.क्लासिकल म्युज़िक से जुड़े होने के बाद भी जब वे भजन गा रहीं हैं तो शब्द की शुध्दता को क़ायम रख रहीं हैं.जहाँ भी उन्होंने किसी पंक्ति को एक ख़ास घुमाव दिया है वहाँ वह लाज़मी सा लगता है. आइये कौशिकी को सुनें

Kaushiki Chakrabar...

Thursday, June 25, 2009

संगीतकार मदनमोहन - 85वाँ जन्मदिन-दो दुर्लभ गीत



अज़ीम संगीतकार मदनमोहन आज होते तो पूरे ८५ बरस के होते। ये कहने में कोई झिझक नहीं कि तमाम ख़राबियों के बाद यदि क़ायनात में कुछ सुरीला बचा है तो वह मदनमोहन जैसे गुणी संगीतकारों की बदौलत। नाक़ामयाब फ़िल्मों का क़ामयाब संगीत रचने वाले मदनमोहन के लिए आज संगीतप्रेमियों में जिस तरह जिज्ञासा, मोहब्बत और जुनून है ; काश ! वह उनके होते हुए होता तो शायद मदनजी १०-२० बरस और जी जाते। ख़ैर अब तो हम सब उनके न होने का अफ़सोस ही कर सकते हैं।

आज २५ जून मदनमोहनजी का जन्मदिन है। उनके बेटे संजीव कोहली मुंबई में रहते हैं और यशराज फ़िल्म्स में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं। हर बरस वे अपने मरहूम पिता का जन्मदिन किसी न किसी रचनात्मक और सुरीले अंदाज़ में ज़रूर मनाते हैं और मदनजी के मुरीदों को मुंबई आमंत्रित करते हैं। अभी दो दिन पहले संजीवजी का लिफ़ाफ़ा मेरे हाथों में था। जब उसे खोला तो एक पत्र के साथ ख़ूबसूरती से डिज़ाइन किया हुआ एक सीडी भी निकला। "तेरे बग़ैर' शीर्षक के इस सीडी के आमुख में मदनमोहनजी की मोहिनी सूरत नज़र आई। जब सीडी को ध्यान से देखा तो वह वाक़ई किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं थी. सीडी में मदनमोहनजी के संगीतबद्ध ऐसे गीतों की मौजूदगी है जिनकी फ़िल्में किसी न किसी वजह से रिलीज़ न हो सकीं। इस सीडी में लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, तलत मेहमूद और किशोर कुमार के गाए अनमोल गीत हैं। सबसे ज़्यादा चौंकाते हैं दो गीत । एक रफ़ी साहब का गाया हुआ शीर्षक गीत "कैसे कटेगी ज़िंदगी तेरे बग़ैर-तेरे बग़ैर (राजा मेहंदी अली ख़ॉं-१९६५)' दूसरा गीत लताजी ने गाया है बोले हैं "खिले कमल सी काया (इंदीवर-१९७२) 'दोनों गायक महान क्यों हैं यदि जानना हो तो इन दो गीतों को सुनिये और अगर यह समझना हो कि कोई संगीतकार किसी गीत की घड़ावन कैसे करता है तब भी इन दोनों गीतों सुनिये। इन गीतों को सुनने के बाद आपको ये भी अंदाज़ा हो जाता है कि मदनमोहन के भीतर महज़ एक संगीतकार नहीं एक कवि और शायर भी हर पल ज़िंदा रहा। यही वजह है कि जब आप इन दोनों गीतों को सुनते हैं तो समझ में आता है कि कविता को सुरीली ख़ुशबू कैसे पहनाई जाती है।

"तेरे बग़ैर' में कुल जमा १४ गीत हैं और इसके साथ एक और नज़राना पेश किया गया है। वह है फ़िल्म वीर-ज़ारा के गीतों की रचना प्रक्रिया की बानगी। इस सीडी में मदनमोहनजी आपको गुनगुनाते हुए सुनाई देते हैं और बाद में सुनाई देता है वह ओरिजनल गीत जो वीर-ज़ारा के लिए रेकॉर्ड किया गया। संजीव कोहली ने "तेरे बग़ैर' के प्रकाशन के लिए यश चोपड़ा साहब का ख़ास शुक्रिया अदा किया है। हॉं ये भी बताता चलूँ कि २५ जून के दिन ही संजीव कोहली ने मदनमोहन के नाम से एक वैबसाइट भी जारी कर दी गई है जिस पर इस बेजोड़ संगीतकार की शख़्सियत और संगीत की जानकारी उपलब्ध है.हाँ मदनमोहनजी,कलाकारों और कोहली परिवार के कुछ बहुत प्यारे चित्र भी यहाँ देखे जा सकते हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि मदनमोहन हमारी ही दुनिया के इंसान थे लेकिन उनका संगीत न जाने किस लोक से आता था जो सुनने वाले को दीवाना बना देता था। ग़ज़लों को जिस अलहदा अंदाज़ में मदनजी ने कम्पोज़ किया है वह विलक्षण है। आज मदनमोहन के जन्मदिन पर आपको "तेरे बग़ैर' से दो गीत सुनवा रहा हूँ उम्मीद है इन गीतों की शब्द रचना और धुन आज पूरे दिन आपको मदनमोहन की याद दिलाती रहेगी।


Thursday, June 18, 2009

पिनाज़ मसानी की आवाज़ में एक सुन्दर भजन

यूँ उनका नाम ग़ज़ल की दुनिया में ज़्यादा लोकप्रिय है लेकिन आज सुनिये पिनाज़ मसानी की आवाज़ में एक भजन.
सखी भाव में पगा ये भजन गाने वाली पिनाज़ ने किराना घराने के वरिष्ठ संगीत साधक पं.फ़िरोज़ दस्तूर साहब से
बाक़ायदा क्लासिकल मूसीकी की तालीम ली और उन्हें विदूषी मधुरानी फ़ैजाबादी जैसी गुणी गुरू का सान्निध्य भी मिला.
मधुरानीजी ने पिनाज़ मसानी की आवाज़ की घड़ावन को परखते हुए उन्हें ग़ज़ल की ओर आने के लिये मुतास्सिर किया.

सुरपेटी पर आज बहुत दिनों बाद कुछ सुनाने का मन बना .
आइये बातें कम और सुर ज़्यादा का मान रखते हुए
पिनाज़ मसानी को सुनते हैं.

Sunday, March 29, 2009

दिल में अब तक तेरी उल्फ़त का निशाँ बाक़ी है

ग़ज़ल के परचम को ऊँचा ले जाने वाले सर्वकालिक महान गुलूकार मेहंदी हसन साहब इन दिनों बहुत बीमार हैं.आर्थिक रूप से उन जैसा कलाकार इसलिये भी संकट में है कि उन्होंने कभी अपनी ज़िन्दगी को बहुत गंभीरता से लिया ही नहीं.भविष्य के लिये सोचने का मौक़ा उन जैसे कलाकारों को कम ही मिल पाता है. आज की पीढ़ी के तमाम कलाकार इस मामले में ज़्यादा सतर्क और सूझबूझ से काम ले रहे हैं. होता यह है कि क़ामयाबी के दौर में कलाकार बस अपने फ़न और प्रस्तुतियों पर ध्यान देना चाहता है. घर-गिरस्ती,स्वास्थ्य,भविष्य के लिये बचत , घर और दीगर सुविधाओं से बेख़बर कलाकार सोचता है अभी समय ठीक चल रहा है चलो अभी तो गाने में ही लगे रहें.समय तो ढलता ही है और शोहरत भी कम होती है. वक़्त के पहले यदि कलाकार ने अपने लिये रूपया-पैसा बचा रखा हो तो ठीक वरना वह सरकार की तरफ़ मुँह ताकता है. कलाकार की मरणासन्न अवस्था में परिजन सोचते हैं स्वास्थ्य के नाम पर सरकारी मदद को भुना ही लिया जाए. यदि सम्पत्ति बेतहाशा है तो अगली पीढ़ी एक दूसरे मरने-मारने तक पर आ जाती है. समझदारी का तक़ाज़ा है कि ऐसे हालात बने उसके पहले कलाकार को समझदारी से जीवन की संध्या बेला में महत्वपूर्ण निर्णय ले लेना चाहिये.लेकिन हम श्रोता तो सिर्फ़ अपने अज़ीज़ फ़नकारों के सुखी जीवन स्वास्थ्य के लिये दुआ कर सकते हैं.

मेहंदी हसन साहब के लिये पूरी दुनिया के संगीतप्रेमियों में सहानुभूति का भाव है और सभी लोग उनके लिये प्रार्थनारत हैं. मृत्यु जीवन की एक ऐसी सचाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता है लेकिन चूँकि कलाकार जीवन भर हमारी ज़िन्दगी को तसल्ली बख्शने का काम करता है सो श्रोता उससे एक ख़ास रिश्ता बना लेता है. कभी कलाकार से मिला न हो,रूबरू सुना न हो लेकिन सिर्फ़ कैसेट,सीडी और रेडियो का आसारा लेकर ही वह अपने जीवन के सुख-दु:ख अपने महबूब फ़नकार की आवाज़ में तलाशता है. आप सोच रहे होंगे आज मेहंदी हसन साहब के हवाले से मैं लैक्चर देने के मूड में कैसे आ गया.नहीं जी ऐसा कुछ नहीं.ख़ाँ साहब की आवाज़ का जादू ही ऐसा है कि उनका ज़िक्र आते ही मन में बहुत सी बातें अनायास आ जातीं हैं. चलिये मेहंदी हसन के स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हुए ये गीत सुन लेते हैं.(मेहंदी हसन साहब की अनेक नायाब ग़ज़लें आप सुख़नसाज़ पर भी सुन सकते हैं)


Thursday, January 8, 2009

याद-ऐ-नबी का गुलशन महका महका लगता है


उस्ताद नुसरत फ़तेह अली का नाम ज़ुबाँ आए तो समझिये इबादत हो गई.
क़व्वाली को जिस अंदाज़ में उन्होंने गाया है वह जितना रूहानी है उतना ही करामाती भी. बस सुनते वक़्त चाहिये थोड़ी सी तसल्ली और एक क़िस्म की लगन.यदि ये दोनो आपके पास हैं तो नुसरत बाबा यक़ीनन आपको दूसरी दुनिया में ले जाने का हुनर रखते हैं. वहाँ विलक्षण गायकी है,लयकारी है और आबाद हैं स्वर के कुछ ऐसे करिश्माई तेवर जो आपको झकझोर कर रख देंगे.कितने अलग अंदाज़ से नुसरत बाबा ने गढ़ी है क़व्वाली की यह रिवायत...आनंद लीजिये.