Friday, April 13, 2012

नुसरत बाबा की एक बेजोड़ बंदिश


नुसरत बाबा जो करते हैं सो अनूठा ही होता है.
ये कंपोज़िशन सुनिये तो लगता है जैसे सुरों का
एक दहकता अंगार हमारे बीच मौजूद है.
उस्तादजी ने क़व्वाली विधा में काम करते हुए मौसीक़ी
के हर उस नयेपन को क़ुबूल किया जो सुरीला हो.
पूरिया या मारवा जैसे राग से प्रकाशित यह बंदिश
रोंगटे खड़े करती है. मुलाहिज़ा फ़रमाएँ.

Sunday, June 19, 2011

रोमांचित करता वर्षा गीत - डर लागे चमके बिजुरिया



आसमान में बादल घिर आये हैं. बिजली की चमक हो रही है. और ऐसे में यदि स्वर-कोकिला और सुकंठी लता मंगेशकर के स्वर में यह रचना आपको सुनने को मिल जाये तो समझिये सावन कुछ पहले ही आपके मन आँगन में मचल उठा है. हिन्दी चित्रपट की गीतिधारा में वर्षा गीतों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है लेकिन ये गीत न जाने क्यूँ विलक्षण ही बन पड़ा है. गीत रचना के अनुरूप बंदिश में मल्हार का रंग तो है ही लेकिन उस पर छा जाती लताजी की आवाज़ जैसे विरहिणी की विवशता का भावुक बयाँ कर रही है.पं.भरत व्यास का यह गीत चित्रपट गीतों की परम्परा में एक अनमोल दस्तावेज़ है. संगीतकार हैं वसंत देसाई जिन्होंने अपने रचना संसार में अमूमन शास्त्रीय संगीत का शानदार उपयोग किया है. उन्होंने ही बोले रे पपिहरा (फ़िल्म:गुड्डी) जैसा अविस्मरणीय गीत भी तो सिरजा है जिसकी भावभूमि भी मल्हार अंग के राग में निबध्द है. मेरे मालवा में अभी मानसून इंतज़ार करवा रहा है. उम्मीद करें कि गीत को सुनकर मेघराज भी कृपा करेंगे और हमारे घर-आँगन में अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर करने आ जाएंगें.