Saturday, August 16, 2008

छोटी सी गुड़िया की कहानी और उस्ताद अली अकबर ख़ाँ का सरोद.

फ़िल्मी संगीतकारों ने कहीं कहीं तो करिश्मा ही कर दिया है.
1955 में बनीं फ़िल्म सीमा का ये गीत ले लीजिये ...सुनो छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी. गीतकार हैं शैलेंद्र और संगीतकार शंकर-जयकिशन. भव्य आर्केस्ट्राइज़ेशन के नामचीन संगीतकार. सिचुएशन के मुताबिक एस.जे. ने हमेशा कुछ इतना बेजोड़ दिया है कि उनका काम सुनिये तो कुछ और पसंद नहीं आता.राग भैरवी(मूलत:प्रात:कालीन राग) को सदा सुहागन राग इसलिये कहा गया है कि आप इसे कभी भी गाइये,लेकिन इतना ख़याल रहे कि इसके बाद आप कुछ गाने का जोखिम नहीं ले सकते. भैरवी हो गई यानी मामला खल्लास.एस.जे. ने जिस तरह से अपने बैंचमार्क (एकाधिक वाद्यों वाला आर्केस्ट्रा) का विचार यहाँ ख़ारिज किया है वह चौंकाता है लेकिन वजह यह कि हाथ में सरोद लेकर बैठे हैं उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब. सरोद के तारों को कुछ ऐसा छेड़ते हुए कि अच्छा सा अच्छा पत्थर दिला इंसान इन सुरों को सुन कर पिघल जाए.गीत हसरत जयपुरी का लिखा हुआ है और शब्दों की लाजवाब कारीगरी का का नमूना है. सरोद की तरबों पर छेड़े भैरवी के स्वर कितना कुछ कहते हैं.

लता मंगेशकर यहाँ अपने करिश्माई गायन से एक और सोपान रच गईं हैं.सरोद के प्री-ल्यूड पर वे जिस तरह से आमद लेतीं है वह विलक्षण है.सुनो शब्द में जिस तरह से साँस समाहित हुई है वह सुनने वाले को पूरा गीत सुनने को विवश कर देती है. सरोद पर लता भारी है या लता पर सरोद यह निर्णय मैं आप पर ही छोड़ता हूँ...मेरी राय जानना चाहेंगे तो मैं कहूँगा सरोद अतीत की ज़मीन बना रहा है और उस पर लता का सुरीला स्वर आपकी उंगली पकड़ कर कहानी सुनाने का काम कर रहा है.

पुराने ज़माने के ये गीत हमें जिलाए रखते हैं.याद दिलाते हैं कि हमारी विरासत क्या है.हम किस तहज़ीब के नुमाइंदे हैं.अपनी उम्र को घटाने के लिये ऐसे ही गीत समय के पहिये को उल्टा फिरा देते हैं....आप सहमत हैं न मुझसे.

6 comments:

Neeraj Rohilla said...

संजय जी,
आप पुराने गीतों को जिक्र करते हैं, आज की रात मैंने और मेरे रूम मेट नें आखों में काटी है | रात दस बजे से पुराने गीत सुनने का जो सिससिला शुरू हुआ तो सुबह के ५:४८ बज चुके हैं | कितने ही गीत अभी सुनने का मन कर रहा है लेकिन मेरा रूम मेट सोने जा चुका है और मैं आपके ब्लॉग पर लताजी को सुन रहा हूँ |

इस गीत को सुनवाने के लिए बहुत आभार |

अमिताभ मीत said...

ग़ज़ब संजय भाई ... अजीब इत्तेफ़ाक़ है ... आप यकीन करें आज ये गाना तकरीबन पोस्ट कर ही दिया था मैं ने भी .... फिर अचानक न जाने क्या सोच कर, शायद आज राखी पहनी थी इसलिए, शंकर जयकिशन का ही एक दूसरा गीत पोस्ट किया ..... "भइया मेरे, राखी के बंधन को निभाना ......"

शंकर जयकिशन ..... कुछ मामलों में तो ये अद्वितीय थे .... जैसा आप ने कहा : आर्केस्ट्राइज़ेशन ... चलिए एक और लाजवाब गीत मेरी तरफ़ से due रहा इस महान संगीतकार जोड़ी का ....

शायदा said...

लंबी कहानी जैसा गीत सुनवाने का शुक्रिया। काफ़ी दिनों से सुनने का मन था इसे।

दिलीप कवठेकर said...

संजय भाई, यह गीत का स्थाई भाव है करुणा, और वह दिल के अंदरूनी हिस्से तक चीर कर उतर रहा है, इसकी वजह है, लता का टीप की बांसुरी जैसा टीस लिये कातर स्वर, उस पर सरोद जैसे भारी तंतुस्वर लिया हुआ वाद्य, गोया दिल एक मोटे धागे से बुना हुआ महीन चिंधी का टुकडा हो और सरोद के स्वर मानो उसके एक एक धागे को तोड रहे हों, तड तड. साथ में पीछे लगभग एक ही लय में बज रही ढोलक, बिना थाप, बिना टुकडे के , मोनोटोनी के अहसास को और गहरा करती हुई... क्या कर डाला आपने. हमारे ज़ख्म हरे हो गये, और जीने का सब याद आया, कि

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वासते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम है.

आपके profile में लिखी हर बात में दम है.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बहुत अच्छा लगा.
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आभार आपका
चन्द्रकुमार

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत उम्दा गीत सुनवाया आपने बहुत आभार !
- लावण्या