आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का दिन पूजा-पाठ,अनुष्ठान का तो है ही लेकिन मैं व्यक्तिगत रूप से इस दिन को भारतीय संगीत दिवस मानना पसंद करता हूँ. श्रीकृष्ण का संगीतप्रेम जग-जाहिर है. उनके हाथों में सजी बाँसुरी इसकी तसदीक करती है. एम.एस.शुभलक्ष्मी,जुथिका रॉय,लता मंगेशकर,अनूप जलोटा और हरिओम शरण की वाणी से जब तब श्रीकृष्ण लीला के गान गूँजे हैं.आज जो रचना सुरपेटी पर लगा रहा हूँ उसे मैंने पं.मदनमोहन मालवीय की पौत्री और पं.ओंकारनाथ ठाकुर की सुशिष्या श्रीमती विभा शर्मा के निवास पर इन्दौर में सुना था. वे मेरी मानस माँ थी. उनसे ज़िन्दगी में कई चीज़ों के प्रति अनुराग जागा , सलाहियतें और नसीहतें मिलीं. आज विभाजी दुनिया में नहीं हैं लेकिन जब भी ये रचना सुनता हूँ विभाजी का स्मरण हो आता है.
संगीतमार्तण्ड पं.ओंकारनाथ ठाकुर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को जो ऊँचाइयाँ दी उसके बारे में विस्तार से फ़िर कभी.आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूज्य पंण्डित जी के स्वर में निबद्ध ये रचना सुनते हैं. इसमें पीछे पंडित रामनारायणजी की सारंगी,एन.राजम की वॉयलिन और पं.बलवंतराय भट्ट का स्वर भी सुनाई देता है.यहाँ ये बता दूँ कि मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो आपने अनूप जलोटा के स्वर में भी सुना होगा लेकिन यहाँ पं.ठाकुर के स्वर-वैभव का एक अनूठापन आपको एक रूहानी तिलिस्म में ले लेता है. वे वाग्गेयकार थे.साक्षात सरस्वती के पुत्र . महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर नें एक बार बनारस विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था पण्डितजी आपके सामने मेरी अदाकारी बहुत तुच्छ है; आप महान रंगकर्मी हैं.
मुझे उम्मीद नहीं थी कि ये रचना कहीं मिल जाएगी लेकिन शायद आप संगीतप्रेमियों के लिये मुझे निमित्त बनाना ही था भगवान श्रीकृष्ण को ...सुनिये और मेरा जय श्रीकृष्ण स्वीकारिये.
(एक ख़ास गुज़ारिश संगीतप्रेमियों से:यहाँ प्रकाशित की जा रही रचना का समय है २० मिनट . इसमें आज के ज़माने का गिमिक और ग्लैमर न होकर शास्त्रीय संगीत का ख़ालिस वैभव समाहित है. जो लोग संगीत में तात्कालिक रस ढूँढते हैं वे इसे सुनकर निराश ही होंगे ; सो सनद रहे.)
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9 comments:
kyaa baat hai!!!
अद्भुत ! ऐतिहासिक रेकॉर्डिंग !
'वकील साहब की पहली दलील'- भोर भये गैय्यन के पाछे...
'जरा खुशामद' - तू जननी मन की बहु भोरी
'देखा जज साहब पिघल नहीं रहे हैं तो ताना मारता है,देवकी का दीकरा(गुजराती या मालवी),'हरिऔध' का उद्धरण !
'तब भी जज साहब का दिल नहीं पिघला'
-' तब जनाब दुखी हो गये'
और अंत में 'कन्हैय्या मोरे तैं नहीं माखन खायो'
पूज्य पध्मश्री बलवन्तराय भट्ट तथा पद्मभूषण डॉ. राजम तो गवाह हैं हीं।
काशी विश्वविद्यालय का संगीत महाविद्यालय पं.ओंकारनाथ ठाकुर ने ही स्थापित किया।आज कल मंच कला संकाय नाम से जाना जाता है।भट्टजी और डॉ. राजम संकाय प्रमुख थे।
संजय भाई का भी हमारे संस्थापक से नाता !
अपूर्व !
अफ़लातून
जय श्री कृष्ण।
बेहतरीन प्रस्तुति।
आपको भी कृष्ण जन्मष्टमी की शुभकामनाएं।
भाई आपके ये विचार सुन कर मन गद गद हो गया है, क्या लाजवाब संगीत का नमूना पेश किया है आज आपने, आप २० मं की बात करते हैं मैं तो ये पूरे दिन सुनता रहूँ.....
अद्भुत!! रचना और रचयिता दोनो !!!
आज इस युग में भी जब हम भक्त सूरदास की रचना के भीतर छिपे भावार्थ को समझ पाते है तो जन्म सार्थक करते है. भक्त कहना और होने में फ़र्क यहां समझ आता है.
जय श्री कृष्ण !
- लावण्या
बेहतरीन प्रस्तुति
tears in my eyes. cant stop listening, thanks so much
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