मुकेश-बरसी पर आज रेडियो,अख़बार और इंटरनेट पर कई आयोजन होंगे और संस्मरण लिखे जाएंगे लेकिन अपनी ओर से ये बात ज़रूर कहना चाहूँगा कि इस गायक को सिर्फ़ सुनकर कोई भी अंदाज़ लगा सकता है कि मुकेश भद्रता के पर्याय थे.मुझे पूरा विश्वास है यह कहते हुए कि संगीतकार अपनी धुन बनाते वक़्त ही तय कर लेते होंगे कि इस गीत में मुकेश को गवाना है. जो भी गीत मुकेशजी ने गाए हैं उनमें एक विशिष्ट सचाई और खरापन सुनाई देता है.
आज सुरपेटी पर जारी इस मुकेश गुजराती संचयन में ज़्यादातर गीतों में जीवन का मर्म,सत्य,नसीहते,नश्वरता,आध्यात्म और रूहानी तबियत का गहरा अहसास है.कहीं कहीं लगता है जैसे ये गीत कबीरी छाप वाले गीत हैं . आप इन्हें गुजराती भाव-गीत भी कह सकते हैं. हो सकता है आप गुजराती बहुत नहीं समझते हों लेकिन आज मुकेशजी की पुण्य-तिथि के दिन इस महान गायक की गान-परम्परा का एक अलग रूप अनुभव तो कर ही सकते हैं.मुकेशजी को सारे संगीत-प्रेमियों की श्रध्दांजलि.
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