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Sunday, September 28, 2008

सूनी हुई मेरे देश की धरती;नहीं रहे महेन्द्र कपूर

एक संगीतप्रेमी मित्र ने जैसे ही एस.एम.एस.भेज कर गायक महेन्द्र कपूर के निधन का समाचार दिया, मन यादों के उन गलियारों की सैर करने लगा जब दो बार उनसे म.प्र.सरकार के प्रतिष्ठित लता पुरस्कार के आयोजन में व्यक्तिगत रूप से मिलने का सुअवसर मिला था. दूसरी बार तो वे इस पुरस्कार से सम्मानित होने पर इन्दौर तशरीफ़ लाए थे. सादा तबियत और बेहत विनम्र महेन्द्रजी से हुई मुलाक़ात की तफ़सील फ़िर कभी.आज तो उनके जाने की ख़बर सुन कर मन बहुत बोझिल सा हुआ जाता है.

जिस समय महेन्द्र कपूर परिदृश्य पर सक्रिय हुए तब रफ़ी साहब की गायकी का जलवा पूरे शबाब पर था. इसमें कोई शक नहीं कि वे सुरों की अनोखी परवाज़ के गुणी गायक थे लेकिन न जाने क्यों उन्हें रफ़ी साहब का अनुगामी ही माना जाता रहा. महेन्द्र कपूर ने कई गीत गाए लेकिन राष्ट्रीय गीतों के गायन में तो वे बेजोड़ रहे.उनके लाइव शोज़ का सिलसिला पूरे बरस चलता रहता था. फ़िल्म निकाह में एक तरह से संगीतकार रवि और महेन्द्र कपूर की धमाकेदार वापसी हुई थी.


सतरंग चूनर नवरंग पाग(ग़ैर फ़िल्मी गीत) और फ़िल्म नवरंग के गीत श्यामल श्यामल बरन मुझे बहुत पसंद है . वजह यह कि इन दो गीतों में महेन्द्र कपूर मुझे पूरी तरह से रफ़ी प्रभाव से मुक्त लगते है. उनका गाया एक गढ़वाली गीत भी विविध भारती के लोक-संगीत कार्यक्रम में बहुत बजता रहा है शायद यूनुस भाई कभी उसे रेडियोवाणी पर सुनवाएं.लता पुरस्कार के दौरान हुए एक जज़्बाती वाक़ये का ज़िक्र मैने कबाड़ख़ाना पर भाई अशोक पाण्डे द्वारा महेन्द्र कपूर पर लिखी गई पोस्ट पर कमेंट करते हुए भी किया है.

इसमें कोई शक नहीं महेन्द्र कपूर के.एल.सहगल,तलत महमूद,मो.रफ़ी,किशोर कुमार,मुकेश,मन्ना डे की ही बलन के श्रेष्ठतम गायक थे.उन्हें सुरपेटी की भावपूर्ण श्रध्दांजली.

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