आसमान में बादल घिर आये हैं. बिजली की चमक हो रही है. और ऐसे में यदि स्वर-कोकिला और सुकंठी लता मंगेशकर के स्वर में यह रचना आपको सुनने को मिल जाये तो समझिये सावन कुछ पहले ही आपके मन आँगन में मचल उठा है. हिन्दी चित्रपट की गीतिधारा में वर्षा गीतों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है लेकिन ये गीत न जाने क्यूँ विलक्षण ही बन पड़ा है. गीत रचना के अनुरूप बंदिश में मल्हार का रंग तो है ही लेकिन उस पर छा जाती लताजी की आवाज़ जैसे विरहिणी की विवशता का भावुक बयाँ कर रही है.पं.भरत व्यास का यह गीत चित्रपट गीतों की परम्परा में एक अनमोल दस्तावेज़ है. संगीतकार हैं वसंत देसाई जिन्होंने अपने रचना संसार में अमूमन शास्त्रीय संगीत का शानदार उपयोग किया है. उन्होंने ही बोले रे पपिहरा (फ़िल्म:गुड्डी) जैसा अविस्मरणीय गीत भी तो सिरजा है जिसकी भावभूमि भी मल्हार अंग के राग में निबध्द है. मेरे मालवा में अभी मानसून इंतज़ार करवा रहा है. उम्मीद करें कि गीत को सुनकर मेघराज भी कृपा करेंगे और हमारे घर-आँगन में अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर करने आ जाएंगें.
5 comments:
निश्चय ही मालवा में बदरी बरस गयीं होगी अब तो .....
कभी इसी गीत को बार बार सुनते हुए आकाश को देखते कि अब बरसे कि अब..इस गीत के बजते ही अब तक तो मालवा भीग चुका होगा ...
doordarshan par ek geet aata thaa 80 ke dashak mein---badri babul ke angna jaiyo........sunwa dein to badi meharbani hogi
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