उन्हें सिर्फ़ हिन्दी चित्रपट गीतों की सीमा में बांधना मूखर्ता ही होगी. गुजराती,मराठी,पंजाबी,राजस्थानी और अंग्रेज़ी तक में अपनी आवाज़ का जलवा बिखेर चुकीं आशाजी ने गायकी के क्षेत्र में एक लम्बी यात्रा तय की है. परिवार में ही संगीत का विराट स्वर मौजूद हो तब अपनी पहचान विकसित करना एक चुनौती होता है. कहना बेहतर होगा कि लताजी यदि संगीत की आत्मा हैं तो आशाजी उसकी देह हैं.
वेदना,मस्ती,उल्लास और अधात्म में पगे गीत जिस तरह से आशाजी के कंठ से निकले हैं वह विस्मयकारी है.
आज सुरपेटी पर प्रकाशित रचना मराठी नाटक मानपमान की ख्यात बंदिश है.इसे कम्पोज़ किया है वरिष्ठ संगीत-महर्षि पं.गोविंदराम टेम्बे ने.जब आप ये रचना सुन रहे होंगे तो महसूस करेंगे कि आशा भोंसले के रूप में हमारे चित्रपट संगीत ने एक महान स्वर पाया किंतु शास्त्रीय संगीत ने इसी कारण न जाने क्या अनमोल खोया.चलिये हिसाब-किताब बाद में करते रहेंगे अभी तो सुनिये आशाजी की तानें,मुरकिया और हरकतें कैसी बेजोड़ बन पड़ीं हैं.
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